महानन्दा बेसिन प्रोजेक्ट क्या है?
महानन्दा बेसिन प्रोजेक्ट क्या है?
आज से 42 वर्ष पहले 19 जुलाई 1978 में 2 प्रोजेक्ट महानंदा बेसिन और तीस्ता बेसिन तत्कालीन बिहार के CM कर्पूरी ठाकुर और बंगाल के CM जोती बसु और दोनों राज्य के कृषि मंत्री के हस्ताक्षर से पारित हुआ था, उस प्रोजेक्ट में बिहार के 67000 हैक्टेयर ज़मीन को सिचाईं के लिए जल मुहैया भी कराना था.
तीस्ता प्रोजेक्ट 1997-98 में ही कम्प्लीट हो गया और इस वजह से आज बंगाल मे 9.22 lakh हैक्टेयर हैक्टर भूमि पे बिना खर्च के जल अपूर्ति हो रही है साथ ही 650 M.W बिजली उत्पादन भी हो रही है जिससे बंगाल का वो एरिया खुशहाल हुआ है.
वहीं दूसरी तरफ महानन्दा बेसिन अब तक अधर में लटका हुआ है.. महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट से बाढ़ के तांडव से राहत मिलने के साथ किसानों की जमीन को सिचाईं के लिए उचित पानी बिना पैसे ख़र्च किए मिलेगा ! इस परियोजना से इस छेत्र में कृषि क्रांति लायी जा सकती है
जब मैंने इस प्रोजेक्ट’ की जानकारी मुहैया करना शुरू किया तो कई महत्वपूर्ण तथ्य जानने को मिले और यह मालूम हुआ कि यह परियोजना सीमांचल के लिए वरदान होगा! इसलिए राज्य सरकार को फ़ौरन आवश्यक कदम उठाते हुए महानंदा बेसिन परियोजना के निर्माण के लिए केंद्र सरकार से समन्वय स्थापित करना चाहिए ताकि सीमांचल को हर वर्ष बाढ़-सुखाड़ से छुटकारा मिले!
इस छेत्र में रहने वाली करीब 2 करोड़ की आबादी को इस आंदोलन मे कूद कर सभी MLA, MP को सदन में बोलने- चीखने को मजबूर कर जल्द से जल्द परियोजना कम्प्लीट करवा लेना चाहिए. वही ये समझ लेना चाहिए की अगर यह परियोजना अभी नहीं शुरू होती है तो इसके बनने का सपना शायद अधूरा न रह जाये! वर्ना हम लाशें ढोते रहेंगे.
इस प्रोजेक्ट के अनगिनत फायदे ?
वर्ष 1987, 1993 के भयंकर बाढ़ और बिहार 2008, 2017 और 2019 के कोसी बाढ़ के बाद बिहार राज्य के बड़े हिस्से में रहने वाले लोगों को जान-व-माल का काफी नुकसान उठाना पड़ा और आगे बहुत डर बना हुआ है ! फिर खरबों रुपया के सरकारी और निजी नुकशान के बाद वादे होते हैं के परियोजनाओं को जल्द शुरू करने की घोषणाएं होती है और फिर इसे भूला दी जाती है! सीमांचल के अंतर्गत आने वाले ज़िले किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया, मधेपुरा आदि की करीब 20 लाख आबादी बाढ़ की चपेट में आती है और करोड़ो का नुकसान उठाना पड़ता है ! सैकड़ों लोगों की जान गयी और हज़ारों हैक्टेयर में फैली फसल तबाह हो गई! बाढ़ की भारी तबाही के बाद एक बार फिर ‘महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट’ की चर्चा जोर पे है इस बार, फर्क़ इतना है के शोर के साथ एक बड़े आन्दोलन के लिए अररिया सहित पूरे सीमांचल में चिंगारी भड़क उठी है. ‘महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट’ को पूर्ण कर लिया जाता तो इतनी भयंकर तबाही नहीं होती
‘महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट’ की जानकारी इस वर्कशॉप में बिहार के राजनेताओं, विधायकों के अलावा जल-संसाधन मंत्री और नदियों से जुड़े विशेषज्ञ एवं किसानों के प्रतिनिधिगण शामिल हुए थे! जहाँ निणर्य लिया गया था कि नहर का निर्माण करके भारत – नेपाल सीमा पर बहने वाली मेची नदी और कोसी नदी को महानंदा नदी से जोड़ दिया जायेगा! इस विशेष परियोजना के जरिये कोसी नदी के 1814 मिलियन क्यूसेकअतिरिक्त पानी को लंबे नहर का निर्माण करके नियंत्रण में लाना था ताकि बारिश के दिनों में बाढ़ जैसी स्तिथि पैदा न हो! इस परियोजना के द्वारा बाढ़ से रहत के लिए अतिरिक्त जल को नियंत्रित करने के साथ-साथ सबसे बड़ा फायदा करीब 2,10,516 हेक्टेयर जमीन को सिंचाई के लिए उचित व्यवस्था करना था! करीब 2903.03 करोड़ की लागत से तैयार होने वाले महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट से पाँच जिलों की फायदा पहुंचेगा जिसमें अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, सुपौल और सहरसा शामिल हैं!
महानंदा नदी बेसिन में पनबिजली की संभावनाओं का पता चला है। नदी के सर्वे की प्रारंभिक रिपोर्ट सकारात्मक रही है। कनकई और मेची नदियों के सर्वे में पांच ऐसे स्थल मिले हैं जहां कम से कम 100 मेगावाट बिजली पैदा हो सकती है। इसमें वृद्धि भी हो सकती है।
राज्य सरकार ने पनबिजली की तलाश के लिए विभिन्न नदियों का सर्वेक्षण शुरू किया था । विशेषज्ञों के अनुसार महानंदा नदी बेसिन में बहुत अधिक पनबिजली पैदा करने की क्षमता है और जो रिपोर्ट आ रही है वह इसे प्रमाणित कर रही है।
इस परियोजना के चालू होने के बाद कई और छोटे परियोजना को लागू कर नहरों का जाल बिछाया जा सकता है और मछली पालन के लिए एक योजना तैयार कर मत्स्य उद्योगों को बढ़ावा दिया जा सकता है.
इंग्लैंड से कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक मुमताज नय्यर, जिन्होंने इस मामले पे बहुत सारे लेख प्रकाशित किया है लिखते है “महानन्दा बेसिन प्रोजेक्ट से सिमांचल मे कृषि क्रांति लाया जा सकता है”
प्रोजेक्ट पर काम ना होने का नुकसान
हरसाल रोड, पूल, पुलिया, नहर आदि के मुरमत पे खर्च के नाम पर घोटाला होता है, राहत सामाग्री पे नेताओं और अफसरों का करोड़ों का धन उगाही बंद हो जाएगा. वर्ल्ड बैंक ने 2008 के बाढ़ के बाद 1300 करोड़ दिए थे कोशी और सीमांचल के विकास के लिए
जुलाई2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 149 करोड़ रुपये की लागत से महानंदा के तटबंधों को बांधने के लिए महानंदा नदी बेसिन परियोजना की शुरुआत की थी। लेकिन इस परियोजना को लांच किए हुए 10 वर्ष बीत चुके हैं पर धरातल पर कोई ऐसी परियोजना का नाम-व-निशान नहीं दिख रहा है। बाढ़ हर साल आती है जान-व-माल का नुकसान हर साल ही होता है।
प्राकृतिक ने हमे बहुत कुछ दिया है अगर उसका सही तरीके से वैज्ञानिक ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो क्षेत्र मे खुशहाली आयेगी नेेे है
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काश कि सरकारें ज़मीन पर काम करना शुरू कर दे तो सीमांचल की तकदीर बदल सकती है
हर साल बाढ़ में डूब रहे लोगों को बहुत हद तक राहत मिल सकती है
लाखों करोड़ों की फसलें तबाहो बर्बाद होने से बच सकती है।।
गवर्नमेंट का ध्यान इस तरफ जाए उसके लिए सीमांचल वालों को आवाज़ बुलंद करने होगी
सीमांचल वालों को एक जुट होकर इसके लिए मुहिम चलानी होगी
तभी मुमकिन है की गूंगी बहरी सरकार तक बात पहुंचे
वरना आज़ादी के 70साल बाद भी आज जो हाल सीमांचल का है
वही हाल आने वाली पीढ़ियों के साथ भी रहने वाली है।
👭बच्चा जब तक रोए ना तब तक तो छोटे से नन्हें मुन्ने बच्चे को भी माँ दूध नहीं पिलाती
अपने कामों में बिज़ी रहती हैं
लेकिन वही बच्चा जब रोने लगता है तो माँ का ध्यान बच्चे की तरफ जाता है
और फिर अपना हर ज़रूरी से ज़रूरी काम छोड़ माँ बच्चे को दूध पिलाती हैं।
सीमांचल वालों को अपने हक के लिए आवाज़ बुलंद करना होगा
सीमांचल वालों को अपना हक मांगना होगा
और हक मांगने से ना मिले तो अपना हक छीन कर लेना होगा।।
🇮🇳हिन्दुस्तान ज़िंदाबाद🇮🇳
#Simachal_special_status
काश कि सरकारें ज़मीन पर काम करना शुरू कर दे तो सीमांचल की तकदीर बदल सकती है
हर साल बाढ़ में डूब रहे लोगों को बहुत हद तक राहत मिल सकती है
लाखों करोड़ों की फसलें तबाहो बर्बाद होने से बच सकती है।।
गवर्नमेंट का ध्यान इस तरफ जाए उसके लिए सीमांचल वालों को आवाज़ बुलंद करने होगी
सीमांचल वालों को एक जुट होकर इसके लिए मुहिम चलानी होगी
तभी मुमकिन है की गूंगी बहरी सरकार तक बात पहुंचे
वरना आज़ादी के 70साल बाद भी आज जो हाल सीमांचल का है
वही हाल आने वाली पीढ़ियों के साथ भी रहने वाली है।
👭बच्चा जब तक रोए ना तब तक तो छोटे से नन्हें मुन्ने बच्चे को भी माँ दूध नहीं पिलाती
अपने कामों में बिज़ी रहती हैं
लेकिन वही बच्चा जब रोने लगता है तो माँ का ध्यान बच्चे की तरफ जाता है
और फिर अपना हर ज़रूरी से ज़रूरी काम छोड़ माँ बच्चे को दूध पिलाती हैं।
सीमांचल वालों को अपने हक के लिए आवाज़ बुलंद करना होगा
सीमांचल वालों को अपना हक मांगना होगा
और हक मांगने से ना मिले तो अपना हक छीन कर लेना होगा।।
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